Friday 29 July 2011

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (एफएक्यू) सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा विधेयक की रोकथाम के बारे में 2011

Q1. सांप्रदायिक हिंसा को रोकने वाले बिल का पूरा नाम क्या है?

उत्तर: सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा (न्याय और reparations प्रवेश) विधेयक, 2011 की रोकथाम.

Q1a क्या यह पूरे भारत में लागू बिल है?
उत्तर: हाँ, लेकिन यह जम्मू और कश्मीर के राज्य मे लागू नहीं है.

Q2. कौन इस बिल के मसौदा को तैयार करवा रहा है?
उत्तर: राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) इसकी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व किया जा रहा है।

Q.3 राष्ट्रीय सलाहकार परिषद क्या है?
उत्तर: राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) केन्द्रीय सरकार के एक आदेश द्वारा गठित किया गया है. यह एक संविधानेतर एक सुपर संसद के रूप में है. इसमे 22 सदस्यों को चुना गया है।  जो लोग इसमे मूल रूप से कर रहे है वह श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा चुने गये.वे सभी कांग्रेस समर्थक ,हिंदू विरोधी लोग विभिन्न सरकारी संगठनों वे (गैर सरकारी संगठनों) से संबंधित इन लोग को जैसे हर्ष Mander, तीस्ता Setalvad (जो प्रारूपण समिति के सदस्य है वह भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा तय किया गये है। झूठी कथाएँ, झूठे गवाहों और मामलों में माननीय न्यायालय के समक्ष गुजरात में झूठे शपथ - पत्र प्रस्तुत करने के लिए जिम्मेदार ठहराया हे।)

प्रश्न 4 इस बिल को कहां प्रस्तुत किया जाएगा?
उत्तर: 2011 में संसद के मानसून सत्र में इसे कानून बनाने के लिए इस बिल को प्रस्तुत किया जाऐगा।




Q.5 इस बिल के बारे में क्या आप को पता है?
उत्तर: जैसा कि नाम से पता चलता है, इस विधेयक को देश में सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के उद्देश्य से लाया जा रहा है. यह उन लोगों को जो साम्प्रदायिक हिंसा किसी 'समूह' यानी अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के खिलाफ सज़ा करना है.

Q5a. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार की रोकथाम के लिए कोई अन्य अधिनियम है?
उत्तर: हाँ, (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

Q.6 इस विधेयक के अनुसार, जो हमेशा अपराधी है?
उत्तर: बहुसंख्यक समुदाय (पढ़ें हिंदुओं).

Q.7 इस विधेयक के अनुसार, जो एक शिकार है?
उत्तर: अल्पसंख्यक समुदाय यानी मुसलमानों, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति.

Q.8 गवाह कौन है?
उत्तर: कोई भी व्यक्ति जो अल्पसंख्यक समुदाय से सम्बंधित ( मुस्लिम, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों) और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के खिलाफ सांप्रदायिक अशांति जैसे मामले में   इस अधिनियम के बारे में जानकारी रखता हे।

Q.9 जो दंगा करने वालो के खिलाफ़ पुलिस मे शिकायत दर्ज कर सकते हैं?
उत्तर: केवल अल्पसंख्यक समुदाय (मुस्लिम, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों) और अनुसूचित जाति के सदस्यों, अनुसूचित जनजाति पुलिस के साथ एक शिकायत दर्ज कर सकते हैं.

बहुसंख्यक समुदाय (हिंदुओं पढ़ें) के सदस्य एक शिकायत नहीं दर्ज कर सकते हैं.

Q.10 एक बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य की गिरफ्तारी (हिंदू पढ़ें) के लिए आवश्यक सबूत है?

उत्तर: कोई भी सबूत जो कि बहुसंख्यक समुदाय (पढ़ें हिंदू) के सदस्य की गिरफ्तारी के लिए आवश्यक है. यदि हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के एक व्यक्ति के खिलाफ शिकायत करता है. इस प्रकार यह आपराधिक कानून के बुनियादी सिद्धांत है जो कहता है हर कोई निर्दोष है जब तक दोषी साबित के खिलाफ है. यहाँ बहुसंख्यक समुदाय (हिंदू पढ़ा) के सदस्य दोषी है जब तक वह अपनी बेगुनाही को साबित नही कर देता है.

Q.11  क्या सांप्रदायिक दंगो का शिकायतकर्ता अल्पसख्यक ही होगा?
उत्तर: निश्चित रूप से हाँ. पुलिस मे केवल अल्पसंख्यकों जो बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों के खिलाफ दर्ज कराई (हिंदुओं पढ़ें) की शिकायत ले जाएगा.

Q.12 कौन इस बिल के तहत गिरफ्तार किया जा सकता है ?
उत्तर: यदि एक संघ (जो हिंदू है) के सदस्य अल्पसंख्यको के खिलाफ किसी को भी अपराध मे नाम लेने पर (पढ़ें हिंदू) उनका सदस्य  माना जाएगा और उसको  गिरफ्तार किया जा सकता है.

        जैसे व्यवहार में यह मतलब होगा कि अगर एक लोक सेवक किसी भी अपराध के साथ चार्ज किया जाता है, राज्य के मुख्यमंत्री को भी गिरफ्तार किया जा सकता है.

जैसे व्यवहार में यह भी मतलब होगा कि अगर किसी भी अखबार में एक अल्पसंख्यक नेता की ओर से शिकायत है कि उसे इस भाषण मे नफ़रत की रिपोर्ट प्रकाशित करने से उसे मानसिक रूप से चोट लगी है तो इस प्रकार भी संपादक, मालिक, प्रकाशक, अखबार के संवाददाता को भी गिरफ्तार किया जा सकता है। 

Q.13 प्रस्तावित अधिनियम के तहत अपराध क्या हैं?
उत्तर: कोई अल्पसंख्यक समुदाय ( मुस्लिम, ईसाई, अन्य अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति) के सदस्यों के खिलाफ बहुसंख्यक समुदाय (पढ़ें हिंदुओं) के सदस्यों द्वारा किये गये कार्य से नफरत प्रचार, यातना, चोट, हत्या, यौन उत्पीड़न,सांप्रदायिक हिंसा  आदि  दंगों की  एक  घटना  में   एक  अपराध   है.
 Q.14 अगर बहुसंख्यक समुदाय का एक सदस्य (पढ़ें हिंदू) घायल हो जाता है या हत्या या उसके घर को आग या उसकी पत्नी के साथ बलात्कार, यह इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत एक अपराध है?
उत्तर: नहीं, बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य किसी भी क्रूरता का शिकार हो तो भी (हिंदुओं पढ़ें) एक अपराध नहीं है. बहुसंख्यक समुदाय (हिंदू पढ़ा) के सदस्य इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत शिकायत नहीं दर्ज कर सकते हैं.

Q.15 यदि एक मुस्लिम किसी दुसरे  घायल या उसपर अत्याचार या उस मुस्लिम को मारता है, यह इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत एक अपराध है?
उत्तर: नहीं, यह इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत एक अपराध नहीं है.यदिशत्रुतापूर्ण वातावरण ना हो।

Q.16  अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति  , अनुसूचित जनजाति से नफरत,या उसके खिलाफ दुष्प्रचार  इस अधिनियम के तहत एक अपराध है?
उत्तर: ये सवाल कुछ अस्पष्ट बात की ओर संदर्भ कर रहे हैं ।ओर इसका मोटे तौर पर दुरुपयोग किया जा सकता है है. निम्नलिखित स्थितियों शामिल हो सकते हैं:
i. यदि बहुसंख्यक समुदाय (पढ़ें हिंदू) के सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय के एक मुस्लिम अर्थात सदस्य के लिए किराए पर एक कमरा दे्ने के लिए मना कर दिया, मुस्लिम बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य के खिलाफ शिकायत (हिंदू पढ़ा)दर्ज कर सकते हैं क्योंकि वह एक मुसलमान था इस लिये उसे कमरा देने से इनकार कर दिया था . बहुसंख्यक समुदाय (हिंदू पढ़ा) के सदस्य इस प्रकार गिरफ्तार किया जा सकता है. अल्पसंख्यक समुदाय (मुस्लिम पढ़ा) के सदस्य के कोई सबूत देने की जरूरत नहीं है. हिंदू साबित होता है कि वह निर्दोष है और कोई गलत प्रतिबद्ध है.

द्वितीय. इसी प्रकार यदि बहुसंख्यक समुदाय के एक सदस्य (पढ़ें हिंदू) व्यापारी के अल्पसंख्यक समुदाय के एक सदस्य (मुसलमान पढ़ें) आपूर्तिकर्ता से एक मुसलमान ने एक शिकायत पर कच्चे माल खरीदने के लिए मना कर दिया है, हिंदू बिना सबूत गिरफ्तार किया जा सकता है.

iii. या धर्मों पर एक चर्चा संगोष्ठी के मामले में, कट्टरवाद, आतंकवाद आदि अल्पसंख्यक समुदाय (मुस्लिम पढ़ने के) के एक सदस्य उन आयोजकों के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकते हैं और उन्हें उनके खिलाफ शत्रुतापूर्ण वातावरण के निर्माण के लिए गिरफ्तार कर लिया. यह स्वतंत्रता भाषण और अभिव्यक्ति संविधान के खिलाफ की गारंटी के मौलिक अधिकार के खिलाफ है.

iv. यदि एक समाचार पत्र के किसी भी राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के बारे में एक रिपोर्ट प्रकाशित, अल्पसंख्यक के किसी भी सदस्य उनके खिलाफ शत्रुतापूर्ण माहौल बनाने के लिए समाचार पत्र के खिलाफ शिकायत और उनकी गिरफ्तारी के लिए नेतृत्व कर सकते हैं।

Q.17 कौन प्रस्तावित अधिनियम के प्रावधानों को लागू करेंगे?

उत्तर: संक्षेप में राष्ट्रीय साम्प्रदायिक सद्भाव, न्याय और हर्जाने के लिए  राष्ट्रीय प्राधिकर्ण.

Q.18 कौन राष्ट्रीय प्राधिकरण के सदस्य हैं?
उत्तर: इस मे 7 सदस्यों  होते हैं. अध्यक्ष और वाइस अध्यक्ष सहित सात सदस्यों मे 4 हमेशा अल्पसंख्यक समुदाय, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति से होते हे.
इसका मतलब यह है कि बिल मानता है कि केवल अल्पसंख्यकों अल्पसंख्यकों के साथ न्याय कर सकते हैं. यह एक खतरनाक आधार के रूप में इसका मतलब है कि एक न्यायाधीश या राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या किसी अन्य लोक सेवक हमेशा अपने धर्म के अनुसार कार्य करता है.

Q.20 राष्ट्रीय प्राधिकरण के अध्यक्ष या वाइस अध्यक्ष बहुसंख्यक समुदाय से चुना जा सकता है?
उत्तर: नहीं अध्यक्ष और वाइस अध्यक्ष  कभी हिंदुओं मे से नही चुने जाते.

Q.21 राष्ट्रीय प्राधिकरण की शक्तियां क्या हैं?
उत्तर: राष्ट्रीय प्राधिकरण सांप्रदायिक हिंसा या यहां तक कि भारत के किसी भी भाग में सांप्रदायिक हिंसा की प्रत्याशा के मामले में लगभग असीमित अधिकार है.
राष्ट्रीय प्राधिकरण पोस्टिंग की निगरानी, सरकारी सेवकों के पुलिस सहित स्थानान्तरण, सुरक्षा बलों आदि भी सांप्रदायिक हिंसा की आशंका के अल्पसंख्यकों के खिलाफ मामले में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति.वे भी पुलिस, सुरक्षा, और सशस्त्र बलों के लिए निर्देश दे सकता है.

इसका मतलब यह भी है कि एक छोटी, तुच्छ जानकारी के आधार पर, राष्ट्रीय प्राधिकरण  राज्य सरकार की सभी शक्तियों ले सकते हैं और राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं.

इसके अलावा राष्ट्रीय प्राधिकरण को अधिकार है ओर शक्ति है कि यह एक सिविल कोर्ट मे किसी को बुलाना उपस्थिति, सबूत प्राप्त कर सकते हैं, गवाह या दस्तावेजों की जांच है, और अन्य सभी एक मामले की सुनवाई के दौरान  करने की शक्ति इसके पास  है.

प्रत्येक राज्यों सरकार ने राज्य स्तर पर ऐसे अधिकारियों को भी माना जाएगा.

Q.22 प्राधिकरण के एक सदस्य बनने की योग्यता क्या है?
उत्तर: नेशनल अथॉरिटी के एक सदस्य बनने के लिए, एक व्यक्ति को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की जरूरत नहीं है. उस व्यक्ति का सद्भाव को बढ़ावा देने का एक रिकॉर्ड, मानवाधिकार, न्याय, आदि होना चाहिए

Q.23 इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत अपराध की प्रकृति क्या है?
उत्तर: (गिरफ्तारी वारंट के बिना) अपराध संज्ञेय और गैर जमानती (पुलिस से जमानत नहीं प्राप्त कर सकते हैं) हैं.

Q.24 क्या अनुमान है के इस रूप में इस अधिनियम के तहत अपराध के लिए?
उत्तर: एक हिंदू जो अधिनियम के तहत गिरफ़्तार किया गया है किसी भी अपराध के साथ चार्ज करने के लिए दोषी हो सकता है जब तक वह अपनी बेगुनाही साबित साबित नही करता है। यह कानून के बुनियादी अनुमान के खिलाफ "हर कोई निर्दोष है जब तक दोषी साबित नही होता है.

Q.25 बिल का लोक सेवकों के बारे में क्या कहना है?
उत्तर: लोक सेवकों के लिये किसी से अनुमति / उन्हें राज्य से मुकदमा चलाने की मंजूरी के बिना अधिनियम के तहत उन पर अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है.

Q.26 कौन अधिनियम के तहत राहत और मुआवजे के हकदार है?
उत्तर: सभी व्यक्तियों, चाहे वे अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक समुदाय के हैं इस प्रस्तावित अधिनियम के तहत राहत और मुआवजे के लिए जिम्मेदार हैं.

Q.27 यौन उत्पीड़न की सज़ा क्या है?
उत्तर: 10 साल  या उम्र केद भी हो सकती है.

Q.28 नफरत प्रचार के लिए क्या सजा है?
उत्तर: सजा 3 साल या जुर्माना या दोनों तक कैद है.

Q.29 संगठित हिंसा के लिए लक्षित सज़ा क्या है?
उत्तर:  उम्र केद ओर सश्रम कारावास.

Q.30 सरकारी सेवकों के लिए सज़ा क्या है?
उत्तर: कर्तव्य की उपेक्षा के लिए सार्वजनिक कर्मचारियों द्वारा सजा  5 साल है, और कमांड जिम्मेदारी के उल्लंघन के लिए जीवन के लिए और 10 साल के लिए अन्य मामलों में सश्रम कारावास है.

Q.31 वहाँ किसी भी सीमा की अवधि तक आप शिकायत कर सकते हैं?
उत्तर: तुम अतीत में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के लिए भी शिकायत कर सकते हैं ।इसके लिये कोई सीमा अवधि नही है.
 यह एक कठोर कानून है जो भारत में हिंदुओं और हिंदुओं की हालत के लिए स्थायी आपात स्थिति लागू होगा। जर्मनी में यहूदियों की जो हालत थी ओर उनपर जो अत्याचार हुए थे और किसी कारण के बिना केवल एक आरोप पर निष्पादित करने के लिए इसी तरह की हो जाएगी.                                                               सोंजन्य से:- ऐड्वोकेट (मोनिका अरोडा )9810246300

Saturday 23 July 2011

महान समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक


बाल गंगाधर तिलक (२३ जुलाई, 1856- १ अगस्त १९२०) भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे। इन्होंने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वराज की माँग उठाई। इनका कथन "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा" बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्हें आदर से "लोकमान्य" (पूरे संसार में सम्मानित) कहा जाता था। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है।
तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के एक गाँव में हुआ था। ये आधुनिक कालेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी में थे। इन्होंने कुछ समय तक स्कूल और कालेजों में गणित पढ़ाया। अंग्रेजी शिक्षा के ये घोर आलोचक थे और मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। इन्होंने दक्खन शिक्षा सोसायटी की स्थापना की ताकि भारत में शिक्षा का स्तर सुधरे।
तिलक ने मराठी में केसरी नामक दैनिक समाचार पत्र शुरु किया जो जल्दी ही जनता में बहुत लोकप्रिय हो गया। तिलक ने अंग्रेजी सरकार की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। इन्होंने माँग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया।
तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्दी ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गई। गरम दल में तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा। 1908 में तिलक ने क्रांतिकारी प्रफुल्ल चकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) में जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए और 1916-18 में ऐनी बीसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथअखिल भारतीय होम रुल लीग की स्थापना की।
तिलक ने भारतीय समाज में कई सुधार लाने के प्रयत्न किए। वे बाल-विवाह के विरुद्ध थे। उन्होंनेहिन्दी को सम्पूर्ण भारत की भाषा बनाने पर ज़ोर दिया। महाराष्ट्र में उन्होंने सार्वजनिक गणेशोत्सवकी परम्परा प्रारम्भ की ताकि लोगों तक स्वराज का सन्देश पहुँचाने के लिए एक मंच उपलब्ध हो। भारतीय संस्कृति, परम्परा और इतिहास पर लिखे उनके लेखों से भारत के लोगों में स्वाभिमान की भावना जागृत हुई। उनके निधन पर लगभग 2 लाख लोगों ने उनके दाह-संस्कार में हिस्सा लिया।
तिलक ने वेदों के इतिहास के बारे में एक पुस्तक लिखी जिसे काफ़ी सराहा जाता है। उन्होंने "आर्यों का आर्कटिक घर" नामक पुस्तक में खगोल शास्त्र के उद्धरण देकर साबित किया कि वेद आर्कटिकक्षेत्र में लिखे गए थे। इसके अलावा उन्होंने गीतारहस्य और जीवन का हिन्दू दर्शन नामक किताबें भी लिखी हैं।

चंद्रशेखर आजाद के जन्म दिवस पर


चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को झाबुआ [मध्यप्रदेश] में हुआ था। उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी व माता का नाम जगरानी देवी था। 15 साल की उम्र में उन्हें पहली और आखिरी बार ब्रिटिश सरकार का विरोध करते पकड़ा गया। जज के सामने उन्होंने अपना नाम आजाद बताया। उन्हें छोड़ दिया गया, लेकिन इससे पहले 15 डंडे मारने की सजा दी गई। बस यहीं से शुरू हुआ चंद्रशेखर आजाद का क्रांतिकारी सफर। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य रहे आजाद ने ही काकोरी ट्रेन लूट और लाला लाजपत राय के हत्यारे सांडर्स को मारने की योजना तैयार की थी
 अंग्रेजों को नाकों चने चबवाने के चंद्रशेखर आजाद के किस्से हर भारतीय जानता है। आलम ये था कि जब पंडितजी को जिंदा पकड़ने की अंग्रेजों की तमाम कोशिशें असफल हो गईं तो उन्होंने एक अचूक दांव खेला। आजाद को मारने के लिए स्काटलैंड यार्ड से बाकायदा एक शार्प शूटर नाट वावर भारत बुलाया गया।

27
फरवरी, 1931 को आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने साथी से मिलने पहुंचे। मुखबिर की सूचना के आधार पर अंग्रेजों ने उन्हें वहां घेर लिया। आजाद का प्रण था कि अंग्रेज उन्हें कभी जिंदा नहीं पकड़ सकेंगे। और उन्होंने इसे साबित भी कर दिखाया। अंग्रेज उन्हें कभी जिंदा गिरफ्तार नहीं सके। बाद में क्रांतिकारियों के डर से वावर को मुंबई भेज दिया गया।

तत्कालीन आईजी की पुस्तक नो टेन कमांडमेंट्स

ब्रिटिश पुलिस के तत्कालीन आईजी एच.टी. हालिंस की पुस्तक 'नो टेन कमांडमेंट्स' में इसका विवरण मिलता है। पुस्तक के अनुवादक नरेश मिश्र के मुताबिक 'नो टेन कमांडमेंट्स' में आजाद के शहीद होने के बाद वावर को मुंबई भेजने की घटना का उल्लेख है। हालांकि किताब में इस बात का कहीं जिक्र नहीं है कि आजाद ने खुद को गोली मारी थी।

जिंदा नहीं पकड़ सके अंग्रेज

मिश्र बताते हैं कि पुलिस कानपुर से ही आजाद का पीछा कर रही थी। उन्हें पता था कि आजाद अचूक निशानेबाज हैं और अपने पास हमेशा पिस्तौल रखते हैं। 27 फरवरी को अल्फ्रेड पार्क में अपने एक साथी से मिलने पहुंचे आजाद को अंग्रेजों के एक मुखबिर ने देख लिया। सूचना मिलते ही वावर टीम लेकर अल्फ्रेड पार्क पहुंच गया। अपने घिरने का एहसास होते ही आजाद ने साथी को वहां से रवाना किया और अकेले ही मोर्चे पर डट गए। जैसे ही वावर उनके पास पहुंचा, आजाद ने उसके हाथ में गोली मार दी। अंग्रेजों और आजाद के बीच 25 मिनट तक गोलीबारी चली। आखिर जब उनके पास सिर्फ एक ही गोली बची तो उन्होंने खुद को गोली मार ली।

Thursday 21 July 2011

देश को एक खतरनाक कानून से बचाएं:



एक अलोकतांत्रिक, साम्प्रदायिक व देश के बहुसंख्यक समाज के ऊपर दमनकारी कानून - 


2011(‘Prevention of Communal and Targeted Violence (Access to Justice and Reparations) Bill,2011’)     सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक                                                                            को जानें तथा एक व्यापक जन जागरण कर इसे संसद में पारित होने से रोकें:
इसमें माना है कि सांप्रदायिक समस्या केवल बहुसंख्यक 
समुदाय के सदस्य ही पैदा करते है। 
अल्पसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति इसके लिए जिम्मेदार नहीं है।
बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के खिलाफ किए गए 
सांप्रदायिक अपराध तो दंडनीय है, किंतु अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों द्वारा बहुसंख्यकों के खिलाफ 
किए गए सांप्रदायिक अपराध दंडनीय नहीं है।
ऐसा इसलिए है, क्योंकि समूह की परिभाषा में बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों को शामिल नहीं 
किया गया है। बहुसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति सांप्रदायिक हिंसा का शिकार नहीं हो सकता है।
अभियुक्त बहुसंख्यक समुदाय के ही होंगे। अधिनियम का अनुपालन एक ऐसे प्राधिकरण संस्था द्वारा 
किया जाएगा जिसमें निश्चित ही बहुसंख्यक समुदाय के सदस्य नगण्य या अल्पमत में होंगे।
पीड़ित के बयान केवल धारा 164 के तहत होंगे अर्थात अदालतों के सामने। यदि किसी व्यक्ति के ऊपर 
घृणा संबंधी प्रचार का आरोप लगता है तो उसे तब तक एक पूर्वधारणा के अनुसार दोषी माना जाएगा 
जब तक वह निर्दोष नहीं सिद्ध हो जाता। साफ है कि आरोप सबूत के समान होगा।
मुकदमे की कार्यवाही चलवाने वाले विशेष लोक अभियोजक सत्य की सहायता के लिए नहीं, बल्कि 
पीड़ित के हित में काम करेंगे।
शिकायतकर्ता पीडि़त का नाम और पहचान गुप्त रखी जाएगी। केस की प्रगति की रपट पुलिस 
शिकायतकर्ता को ही बताएगी।
एक गैर हिन्दू महिला के साथ किए गए दुर्व्यवहार को तो अपराध मानता है; परन्तु हिन्दू महिला के 
साथ किए गए बलात्कार को अपराध नहीं मानता जबकि साम्प्रदायिक दंगों में हिन्दू महिला का शील 
ही विधर्मियों के निशाने पर रहता है।
अल्पसंख्यक वर्ग के किसी व्यक्ति के अपराधिक कृत्य का शाब्दिक विरोध भी इस विधेयक के 
अन्तर्गत अपराध माना जायेगा। यानि अब अफजल गुरु को फांसी की मांग करना, बांग्लादेशी 
घुसपैठियों के निष्कासन की मांग करना, धर्मान्तरण पर रोक लगाने की मांग करना भी अपराध बन 
जायेगा।
भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुसार किसी आरोपी को तब तक निरपराध माना जायेगा जब 
तक वह दोषी सिद्ध न हो जाये; परन्तु, इस विधेयक में आरोपी तब तक दोषी माना जायेगा जब तक 
वह अपने आपको निर्दोष सिद्ध न कर दे। इसका मतलब होगा कि किसी भी गैर हिन्दू के लिए अब 
किसी हिन्दू को जेल भेजना आसान हो जायेगा। वह केवल आरोप लगायेगा और पुलिस अधिकारी 
आरोपी हिन्दू को जेल में डाल देगा।
यदि किसी संगठन के कार्यकर्ता पर साम्प्रदायिक घृणा का कोई आरोप है तो उस संगठन के मुखिया 
पर भी शिकंजा कसा जा सकता है।
संगठित सांप्रदायिक और किसी समुदाय को लक्ष्य बनाकर की जाने वाली हिंसा इस कानून के तहत 
राज्य के भीतर आंतरिक उपद्रव के रूप में देखी जाएगी। इसका अर्थ है कि केंद्र सरकार ऐसी दशा में 
अनुच्छेद 355 का इस्तेमाल कर संबंधित राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने में सक्षम होगी। यदि 
प्रस्तावित बिल कानून बन जाता है तो केंद्र सरकार राज्य सरकारों के अधिकारों को हड़प लेगी।
विधेयक अगर पास हो जाता है तो हिन्दुओं का भारत में जीना दूभर हो जायेगा। देश द्रोही और हिन्दू 
द्रोही तत्व खुलकर भारत और हिन्दू समाज को समाप्त करने का षडयन्त्र करते रहेंगे; परन्तु हिन्दू 
संगठन इनको रोकना तो दूर इनके विरुध्द आवाज भी नहीं उठा पायेंगे। हिन्दू जब अपने आप को 
कहीं से भी संरक्षित नहीं पायेगा तो धर्मान्तरण का कुचक्र तेजी से प्रारम्भ हो जायेगा। इससे भी 
भयंकर स्थिति तब होगी जब सेना, पुलिस व प्रशासन इन अपराधियों को रोकने की जगह इनको 
संरक्षण देंगे और इनके हाथ की कठपुतली बन देशभक्त हिन्दू संगठनों के विरुध्द कार्यवाही करने के 
लिए मजबूर हो जायेंगे।
यूपीए अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्षा के नाते एक केविनेट 
मंत्री के बराबर दर्जे का वेतन, भत्ते तथा स्टेट्स के साथ सुख सुविधाएं पा रही हैं । इसी परिषद ने यह 
विधेयक तैयार किया है। इसके सदस्यों और सलाहकारों में हर्ष मंडेर, अनु आगा, तीस्ता सीतलवाड़, 
फराह नकवी जैसे हिन्दू विद्वेषी तथा सैयद शहाबुद्दीन, जॉन दयाल, शबनम हाशमी और नियाज 
फारुखी जैसे घोर साम्प्रदायिक शक्तियों के हस्तक हों तो विधेयक के इरादे क्या होंगे, आसानी से आप 
इसकी कल्पना कर ही सकते हैं। इन सब को भी प्रधान मंत्री कार्यालय के माध्यम से धन राशि मिलती 
है।
देश के समस्त पूज्य संतों, राजनीतिज्ञों, प्रबुध्द वर्ग तथा राष्ट्र भक्त हिन्दू समाज से अनुरोध है कि 
केन्द्र सरकार के इस पैशाचिक विधेयक को रोकने के लिए सशक्त प्रतिकार करें।

Tuesday 19 July 2011

मंगल पाण्डे 1857 की क्रान्ति का प्रथम शहीद


 कहा 1857 की क्रान्ति का प्रथम शहीदजाता है कि पूरे देश में एक ही दिन 31 मई 1857 को क्रान्ति आरम्भ करने का निश्चय किया गया था, पर 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी के सिपाही मंगल पाण्डे (19जुलाई 1827-8 अप्रैल 1857) की विद्रोह से उठी ज्वाला वक्त का इन्तजार नहीं कर सकी और प्रथम स्वाधीनता संग्राम का आगाज हो गया। मंगल पाण्डे को 1857 की क्रान्ति का पहला शहीद सिपाही माना जाता है। उत्तर प्रदेश राज्य के बलिया जिले के नगवा गांव में पैदा हुए इस भारतीय वीर के नाम युग-युगांतर तक आजादी की क्रांति का इतिहास देशभक्ति और हिम्मत की प्रेरणा देता रहेगा।
उनतीस मार्च 1857, दिन रविवार-उस दिन जनरल जान हियर्से अपने बंगले में आराम कर रहा था कि एक लेफ्टिनेंट बद्हवास सा दौड़ता हुआ आया और बोला कि देसी लाइन में दंगा हो गया है। खून से रंगे अपने घायल लेफ्टिनेंट की हालत देखकर जनरल जान हियर्से अपने दोनों बेटों को लेकर 34वीं देसी पैदल सेना की रेजीमेंट के परेड ग्राउण्ड की ओर दौड़ा। उधर धोती-जैकेट पहने 34वीं देसी पैदल सेना का जवान मंगल पाण्डे नंगे पांव ही एक भरी बन्दूक लेकर क्वाटर गार्ड के सामने बड़े ताव मे चहलकदमी कर रहा था और रह-रह कर अपने साथियों को ललकार रहा था-अरे! अब कब निकलोगे तुम लोग अभी तक तैयार क्यों नहीं हो रहे हो? ये अंग्रेज हमारा धर्म भ्रष्ट कर देंगे। आओ, सब मेरे पीछे आओ। हम इन्हें अभी खत्म कर देते हैं। लेकिन अफसोस किसी ने उसका साथ नहीं दिया, पर मंगल पाण्डे ने हार नहीं मानी और अकेले ही अंग्रेजी हुकूमत को ललकारता रहा। तभी अंग्रेज सार्जेंट मेजर जेम्स थार्नटन ह्यूसन ने मंगल पाण्डे को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। यह सुन मंगल पाण्डे का खून खौल उठा और उसकी बन्दूक गरज़ने लगी। सार्जेंट मेजर ह्यूसन वहीं लुढ़क गया। अपने साथी की यह स्थिति देख घोडे़ पर सवार लेफ्टिनेंट एडजुटेंट बेम्पडे हेनरी वॉग मंगल पाण्डे की तरफ बढ़ता है, पर इससे पहले कि वह उसे काबू कर पाता, मंगल पाण्डे ने उस पर गोली चला दी। दुर्भाग्य से गोली घोड़े को लगी और वॉग नीचे गिरते हुये फुर्ती से उठ खड़ा हुआ।
अब दोनों आमने-सामने थे। इस बीच मंगल पाण्डे ने अपनी तलवार निकाल ली और पलक झपकते ही वॉग के सीने और कन्धे को चीरते हुये निकल गई। तब तक जनरल जान हियर्से घोड़े पर सवार परेड ग्राउण्ड में पहुंचा और यह दृश्य देखकर भौंचक्का रह गया। जनरल हियर्से ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को हुक्म दिया कि मंगल पाण्डे को तुरन्त गिरफ्तार कर लो पर उसने ऐसा करने से मना कर दिया। तब जनरल हियर्से ने शेख पल्टू को मंगल पाण्डे को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया। शेख पल्टू ने मंगल पाण्डे को पीछे से पकड़ लिया। स्थिति भयावह हो चली थी। मंगल पाण्डे ने गिरफ्तार होने से बेहतर मौत को गले लगाना उचित समझा और बन्दूक की नाल अपने सीने पर रख पैर के अंगूठे से फायर कर दिया।
लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था, सो मंगल पाण्डे सिर्फ घायल होकर ही रह गया। तुरन्त अंग्रेजी सेना ने उसे चारों तरफ से घेर कर बन्दी बना लिया और मंगल पाण्डे पर कोर्ट मार्शल का आदेश हुआ। अंग्रेजी हुकूमत ने 6 अप्रैल को फैसला सुनाया कि मंगल पाण्डे को 18 अप्रैल को फांसी पर चढ़ा दिया जाये। पर बाद में यह तारीख 8 अप्रैल कर दी गयी, ताकि विद्रोह की आग अन्य रेजिमेण्टो में भी न फैल जाये। मंगल पाण्डे के प्रति लोगों में इतना सम्मान पैदा हो गया था कि बैरकपुर का कोई जल्लाद फांसी देने को तैयार नहीं हुआ। नतीजन कलकत्ता से चार जल्लाद बुलाकर मंगल पाण्डे को 8 अप्रैल, 1857 को फांसी पर चढ़ा दिया गया। मंगल पाण्डे को फांसी पर चढ़ाकर अंग्रेजी हुकूमत ने जिस विद्रोह की चिंगारी को खत्म करना चाहा, वह तो फैल ही चुकी थी और देखते ही देखते इसने पूरे देश को अपने आगोश में ले लिया। ओर इस तरह   मंगल पाण्डे आजादी का प्रथम शहीद कहलाया।

Thursday 14 July 2011

रिश्तो पर प्रहार


आज कल हिन्दु परिवारों को देख कर मन मे एक ख्याल बार-बार आ रहा था कि क्या हम आने वाली पिढी के साथ अन्याय तो नही कर रहे।क्यों कि हिन्दुओं ने ओर हमारी भारत सरकार ने आजकल एक नारा अपना रखा हे। (हम दो हमारा एक ) ओर मुसलमान (हम दो हमारे 20 ) क्या ये हिन्दुओं के रिश्तो पर प्रहार नही हे ?क्यों कि आने वाले समय मे ना मोसी होगी ना मामा ना चाचा ना बुआ ओर ना जाने कितने रिश्ते एसे ही खत्म हो जाएंगे ।क्यों कि रिश्तो से रिश्ते जुड्ते हें । ओर हम सभी इस बात के लिए कहीं ना कहीं जिम्मेदार हें। ओर हमारी आने वाली पिढी हमारे रिश्ते हमारे संस्कार सब समय के साथ भुल जाएंगे।आज मेहंगाई के दोर मे ज्यादातर हिन्दु परिवार अकेले ओर दुर-दुर रेहते हे।रिश्तेदारों का आना जाना कम ही हो पाता है।जब कोई आएगा नही तो बच्चों को रिश्तों का पता ही नही चलेगा। सोंचों सोचों ओर सोचों क्या ये हिन्दु परिवारों के लिये ठीक हे ?

Tuesday 12 July 2011

जय हो अमरनाथ बाबा बर्फानी

 ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से लगाए जा रही अटकलों के बावजूद अमरनाथ में 16 फीट ऊंचा शिवलिंग बना है। साल 2011 के भव्य दर्शन के लिए अमरनाथ यात्रा 29 जुलाई से शुरू हो रही है।
मालूम हो कि इस बार अमरनाथ में बाबा बर्फानी पंद्रह से सोलह फुट के आकार में प्रकट हुए हैं। ग्लोबल वार्मिंग की आशंका के चलते माना जा रहा था कि लिंगम का आकार कम हो सकता है लेकिन 13 हजार फुट की ऊंचाई पर इस गुफा में बाबा बर्फानी अपने पुराने रूप में मौजूद हैं।
बाबा के द्वार तक पहुंचने के लिए भक्तों को काफी वक्त लग जाता है। बाबा के भवन तक जाने वाले बालतल के रास्ते में अभी भी बीस फुट के करीब बर्फ जमा है। खून जमा देनेवाली सर्दी पड़ रही है। 2011 के दर्शन के लिए गुफा तक अभी भक्त नहीं पहुंच पाए हैं। गुफा तक सिर्फ पुलिस की एक टुकड़ी ही पहुंची है और गुफा को अपने सुरक्षा में ले लिया है। बाबा अमरनाथ की यात्रा के लिए सारे इंतजामों को आखिरी शक्ल दी जा रही है। यात्रा 29 जुलाई से शुरू हो जाएगी।

Monday 4 July 2011

स्वामी विवेकानंद


स्वामी विवेकानन्द (१२ जनवरी,१८६३- ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासम्मेलन में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का वेदान्त अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। रामकृष्ण जी बचपन से ही एक पहुँचे हुए सिद्ध पुरुष थे। स्वामीजी ने कहा था की जो व्यक्ति पवित्र ढँग से जीवन निर्वाह करता है उसी के लिये अच्छी एकाग्रता प्राप्त करना सम्भव है!
जीवन वृत्त
विवेकानन्दजी का जन्म १२ जनवरी सन्‌ १८६३ को हुआ। उनका घर का नाम नरेन्द्र था। उनके पिताश्री विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अँग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढँग पर ही चलाना चाहते थे। नरेन्द्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। इस हेतु वे पहले 'ब्रह्म समाज' में गये किन्तु वहाँ उनके चित्त को सन्तोष नहीं हुआ।
सन्‌ १८८४ में श्री विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेन्द्र पर आ पड़ा। घर की दशा बहुत खराब थी। कुशल यही थी कि नरेन्द्र का विवाह नहीं हुआ था। अत्यन्त गरीबी में भी नरेन्द्र बड़े अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रात भर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते।
गुरु भेंट
रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर नरेन्द्र उनके पास पहले तो तर्क करने के विचार से ही गये थे किन्तु परमहंसजी ने देखते ही पहचान लिया कि यह तो वही शिष्य है जिसका उन्हें कई दिनों से इन्तजार था। परमहंसजी की कृपा से इनको आत्म-साक्षात्कार हुआ फलस्वरूप नरेन्द्र परमहंसजी के शिष्यों में प्रमुख हो गये। सन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानन्द हुआ।
स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की परवाह किये बिना, स्वयं के भोजन की परवाह किये बिना वे गुरु-सेवा में सतत संलग्न रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था। कैंसर के कारण गले में से थूक, रक्त, कफ आदि निकलता था। इन सबकी सफाई वे खूब ध्यान से करते थे। वे सदा उनका आदर सत्कार करते थे। वे हमेशा उनसे ज्ञान पाने की लालसा रखते थे।
निष्ठा
एक बार किसी ने गुरुदेव की सेवा में घृणा और लापरवाही दिखायी तथा घृणा से नाक-भौं सिकोड़ीं। यह देखकर विवेकानन्द को गुस्सा आ गया। उस गुरु भाई को पाठ पढ़ाते और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर फेंकते थे। गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे अपने गुरु के शरीर और उनके दिव्यतम आदर्शों की उत्तम सेवा कर सके। गुरुदेव को वे समझ सके, स्वयं के अस्तित्व को गुरुदेव के स्वरूप में विलीन कर सके। समग्र विश्व में भारत के अमूल्य आध्यात्मिक खजाने की महक फैला सके। उनके इस महान व्यक्तित्व की नींव में थी ऐसी गुरुभक्ति, गुरुसेवा और गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा!
यात्राएँ
25 वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिये। तत्पश्चात् उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। सन्‌ 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानन्दजी उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे। योरोप-अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहाँ लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानन्द को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला किन्तु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गये। फिर तो अमेरिका में उनका अत्यधिक स्वागत हुआ। वहाँ इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। तीन वर्ष तक वे अमेरिका में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे। उनकी वक्तृत्व-शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया। आध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा" यह स्वामी विवेकानन्दजी का दृढ़ विश्वास था। अमेरिका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएँ स्थापित कीं। अनेक अमेरिकन विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। 4 जुलाई सन्‌ 1902 को उन्होंने देह-त्याग किया। वे सदा अपने को गरीबों का सेवक कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशान्तरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया। जब भी वो कहीं जाते थे तो लोग उनसे बहुत खुश होते थे।